राजा दुष्यन्त की प्रतीक्षा और याद मे खोई शकुन्तला ने आश्रम की दिनचर्या मे भाग लेना कम कर दिया। दुर्भाग्यवश ऐसे समय मे जब शकुन्तला अपनी यादों मे खोई हुई थी कि आश्रम मे दुर्वाषा ऋषि आगमन करते हैं। शकुन्तला द्वारा आश्रम मे उनका उचित स्वागत नही किया जाता। इस उपेक्षा से ऋषि दुर्वाषा अत्याधिक क्रोधित हो जाते है और शकुन्तला को श्राप देते है कि जिस की याद मे खोई होने के कारण तूने मेरा उचित स्वागत नही कर के मेरा अपनान किया है वो व्यक्ति तूझे भूल जायेगा। ऋषि के इस कथन का जब आश्रम वासियों को लगता है तो वे सब सहम जाते है और दुर्वाषा ऋषि को शकुन्तला की हालत के बारे मे समझाते है तथा क्षमा याचना करते है। शकुन्तला भी अपनी ग़लती स्वीकार कर ऋषी से क्षमा याचना करती है।

शकुन्तला तथा आश्रम वासियों द्वारा क्षमा याचना माँगने के कारण दुर्वाषा ऋिष का क्रोध शान्त हो जाता है। दुर्वाषा सब को सम्बोधन कर के कहते है कि ऋषि का श्राप तो वापस नहीं लिया जा सकता है पर उसका प्रभाव या सीमा कम की जा सकती है। वो शाकुन्तला को कहते है कि अगर तुम उस व्यक्ति को पहचान की कोई वस्तु दिखलाओगी तो वो तुम्हें पहचान लेगा। इस को सुन कर शाकुन्तला को विश्वास हो जाता है कि राजा दुष्यन्त की दी हुई अँगूठी जो उस के पास है को वो जब राजा को दिखलायेगी तो वो उसे पहचान लेंगे। दुर्वाषा ऋषि इस के बाद आश्रम से प्रस्थान करते है।

 

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