हिमालय की अनन्त पर्वतीय श्रंखलाओ में से शिवािलक पर्वतीय श्रेणीयों के सघन वनों मे िस्तथ ये रमणीय स्थान पवित्र मालिनी के तट पर है और जिसे कणव ऋषी का आश्रम या कणवाश्रम भी कहते है । व्यापक क्षेत्र में फैला ये आश्रम एक विश्व विख्यात आध्यात्मिक तथा ज्ञान-िवज्ञान का केन्द्र था तथा एक आदर्श महाविद्यालय जहाँ सहस्र विद्यार्थी कुलपती महा ऋषी कणव से िशक्षा ग्रहण करते थे । ये वही पावन पुण्य स्थल है जहाँ इस देश के नाम देही चक्रवर्ती सम्राट भरत का जन्म हुआ था । ये जानकारी आज शायद आप सब में से कुछ को ही हो जो िक इस देश के इतिहास में रुचि रखते हों की इस महान देश को िजस के हम नागरिक हैं को क्यों भारत या भारतवर्ष के नाम से जाना जाता है । उत्तराँचल या उत्तराखंड में Kotdwara शहर से १२ km दूर पवित्र मालिनी नदी आज भी पूर्वत की तरह प्रवाहमान है पर नहीं उसके तट पर वो ज्ञान-िवज्ञान का केन्द्र िजसके ज्ञान के माध्यम से इस देश को आलोिकत िकया । ये स्थान ऋिष मुनियों की तपस्थली भी था जहाँ साधना में लीन ऋिष मोक्ष की प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या करते थे ।

On entering the plain ground at Chawkighat the Malini river bed spreads out due to which the intensity of the flow reduces considerably. In the rainy season due to the large catchment area the quantum of water carried by the river is huge and it’s flow fast and it carries along with it mud, rocks, boulders, sand, uprooted trees etc. From Chawkighat, Malini river traverses a distance of about 60 Kms before it merges into the river Ganga at a place called Ravali in U.P. At the end of the rainy season the flow of the river is considerably reduced and most of the water is tapped and fed into the irrigation canals for agriculture purpose. Malini possibly is one of the few rivers in this country which today is un polluted and it’s water clear, cool and sweet.

चौकीघाट से समतल भूमि में प्रवेश करने के उपरान्त मालिनी नदी का पाट चौड़ा हो जाता है तथा उसके वेग में कमी आ जाती है । पर वर्षा ऋतु में मालिनी अत्यंत तेज़ गति से बहती है तथा उसमें मिटटी, पत्थर, रेत, लकड़ी इत्यादि बह कर आता है । चौकीघाट से चल कर मालिनी क़रीब ६० की०मी० का रास्ता तय कर के उत्तर प्रदेश मे रवाली नामक स्थान पर गंगा नदी में मिल जाती है । वर्षा ऋतु के उपरान्त मालिनी नदी का पानी कम हो जाता है और ये पानी नहरों के माध्यम से खेतों में सिंचाई के लिए उपयोग में लाया जाता है । वर्तमान में हमारे देश मे अन्य नदियों की अपेक्षा मालिनी नदी प्रदूषण मुक्त है तथा इस का पानी साफ़, शीतल तथा मीठा है ।

 

From historical point of view the rivers play a very important role because on their banks civilisation take root, flourish and perish. Change in course of river destroy established civilisation on its banks. All the rivers presently flowing in this country have been doing so since time immemorial as most have been described in our epics. Amongst all these rivers, Sarsavati river on whose banks the great Vedas were created, has been unfortunate to have lost its existance due upheavals in the earth crust which blocked it flow. In contrast Malini has been extremely lucky to have Karnavashram established on its bank by sage Karnav and blessed with the birth of ” Bharat”. It seems that their has been no chage in the path of Malini from its place of origin till Chawkighat/Karnavashram.

एतिहासिक दृष्टि से नदियों का महत्व अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है क्योंकि इन के तट पर सभ्यताएँ बस्ती है, फलती फूलती है तथा उजड़ती है । कई नदियाँ समय में अपने रास्ता बदल कर बसी हुई सभ्यता को उजाड़ देती है । इस देश मे वर्तमान में मौजूद सभी नदियाँ अनन्त काल से यहाँ बह रही है और इन सब का वर्णन हमारे ग्रन्थों में किया गया है । पर इन सब नदियों में से एक सरस्वती नदी, जिस के तट पर वेदों की रचना की गयी थी इतनी भाग्यशाली नहीं थी क्योंकि धरती की सतह की उथल-पुथल ने उसका रास्ता रोक दिया अौर उस के अस्तित्व को समाप्त कर दिया । पर मालिनी नदी अत्यन्त भाग्यशाली रही क्योंकि उस के तट पर कणव ऋषी ने अपने आश्रम की स्थापना की तथा उसके तट पर “भरत” का जन्म हुआ । अपने उद्गम स्थल से चौकीघाट – कणवाश्रम तक, हज़ारों वर्षों मे मालिनी नदी के पथ में शायद ही कोई बदलाव आया हो ।

Though the furiosity of time has destroyed all physical evidence of Karnavashram the characters in their have been made immortal in the epics written by the saints. If we give flight to our thoughts and move with the flow of air into the past we will come across the great sage Vishavamitra deep in worship, possibly in his hermitage on the bank of river Koha. The dedicated worship of Vishavamitra becomes a source of worry to Lord Indra who sends fairy Maneka to Earth from the heavenly abode to disturb the penance of Visahvamitra. With her charms Maneka is able to attract the attention of the sage who marries her and keeps her in his ashram. In time Menka gives birth to a beautiful girl child. Having succeeded in her motive to disturb the penance of Vishavamitra, Meneka returns to her heavenly abode. The complete episode can be viewed from a diffrent prospective which is possibly more realistic.

समय की विभीषिका ने कणवाश्रम के भौतिक अस्तित्व को तो समाप्त कर दिया पर महाऋषियो के द्वारा रचित ग्रन्थों ने कणवाश्रम के सभी पात्रों को अमर बना दिया । अगर हम अपनी कल्पना को पर लगा कर हवा के झोके के साथ अगर अतीत मे जाये तो हमें दृष्टिगोचर होते है महाषि विश्वामित्र जो अपने आश्रम सम्भवत खो नदी के आसपास अपनी अटूट एकाग्र तपस्या मे लीन दिखाई देंगे । उनकी इस घनघोर तपस्या को देख इन्द्र देव अतयाधिक विचलित हो जाते है तथा उनकी तपस्या को भंग करने के लिए देव लोक से अप्सरा मेनका को पृथ्वी पर भेजते है । मेनका अपने सौन्दर्य से महाऋिष का मन मोह लेती है और वे उससे प्रणय कर अपने आश्रम मे रख लेते है । कुछ समय उपरान्त मेनका एक सुन्दर कन्या को जन्म देती है । विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के अपने उद्देश्य मे सफल मेनका अपनी कन्या को वन मे छोड़ कर वापस देव लोक चली जाती है । इस सम्पूर्ण घटना का एक अन्य दृष्टि कोण से भी देखा जा सकता है जो की वास्तवीक प्रतीत होता है ।

 

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