Wondering through the dense forest one day Chancellor Karnav observed undue cheering of birds in a particular place and went on to investigate the reason. On reaching the spot he saw a newly born girl child. Due his humanitarian and religious instinct he picked up the child and brought her to the ashram. As she was protected by birds sage Kanav named her Shankuntala. In time Shakuntala grew up in the ashram and obtained her cultural and social education in Karnavahram. Due to her personality and bearing she looked after the ashram in the absence of chancellor Karnav. The region of Karnavahram was under the jurisdiction of the King Dushayant.
सधन वन मे विचरते हुए कुलपति महाषि कणव का ध्यान एक जगह पंछियों द्वारा अत्याधिक कोलाहल करने के कारण आकर्षित हुआ तथा जिज्ञासा से इस का कारण खोजने उस स्थान पर पहुँचने पर उन्होंने देखा की वहाँ एक नवजात कन्या पड़ी हुई है । मानवता तथा धर्म का पालन करते हुए कुलपति कणव महाषि उसे उठा कर अपने आश्रम मे ले आये । क्योंकि पंछियों द्वारा उस कन्या की रक्षा की गयी थी कणव ने उसका नाम शाकुन्तला रख दिया । समय के साथ शाकुन्तला कुलपति कणव के आश्रम मे क्षिशा – दिक्षा प्राप्त कर संस्कारों के साथ बड़ी हुई । अपनी प्रतिभा तथा अपने व्यक्तित्व का कारण शाकुन्तला कणव महाषि की अनुपस्थिती मे आश्रम का संचालन करती थी । कणवाश्रम का क्षेत्र उस समय राजा दुष्यंत के क्षेत्राधिकार मे आता था ।
Very little is written about king Dushyant in our epics and history books. No information is available about the extent of his kingdom, social and cultural situation and most importantly about the capital of his kingdom. In number of books it has been shown that king Dushyant kingdom capital was Hastinapur, which is incorrect. The city of Hastinapur was established by King Hasti was the grandson of grandson of Dushyant. But the capital of Dushyant was some where near Karnavahram as out on a hunt he reached near the ashram in one day. Their is also a strong possibility that the capital of King Dushyant may have been Hastinapur itself but it’s name could have been diffrent and King Hasti may have renamed it subsequently. A issue for further research………..
राजा दुष्यंत के बारे मे हमारे ग्रन्थो तथा इतिहास की पुस्तकों मे बहुत कम जानकारी मिलती है । उनके राज्य की भौगोलिक सीमाओं, राज्य की संस्कृतिक, सामाजिक दशा तथा उनकी राजधानी के बारे भी कही कुछ नहीं लिखा मिलता है । कई जगह पुस्तको मे ये दर्शाया गया है कि दुष्यंत की राजधानी हस्तिनापुर थी जो की सही नहीं है क्योंकि हस्तिनापुर को राजा हस्ती ने बसाया था जो की राजा दुष्यंत के पोते के पोते थे । पर सम्भवत दुष्यंत के राज्य की राजधानी कणवाश्रम के कुछ दूरी पर थी क्योंकि आखेट करतेहुए वे एक ही दिन मे आश्रम के पास पहुँच गये थे । ये भी सम्भव है कि उनकी राजधानी हस्तिनापुर ही रही हो पर उसका नाम कुछ और रहा होगा जो बाद मे राजा हस्ती के द्वारा बदल दिया गया हो । ये एक शोध का विषय है ……..
आखेट निकले राजा दुष्यंत शिकार का पीछा करते हुए कणवाश्रम के निकट पहुँच जाते है । राजा दुष्यंत का कणवाश्रम मे आने के सम्बन्ध मे विभिन्न पहलू है ।एक के अनुसार राजा जब शिकार करते हुए जब आश्रम के क़रीब पहुँचते है तो आश्रम के निवासी, जो मालिनी के तट पर लकड़ियॉ बीन रहे थे उन्हे आश्रम के बारे मे जानकारी देते हैं तथा वहॉ आखेट करने से मना करते है। एक अन्य कथा के अनुसार राजा के बाण से घायल हिरण आश्रम मे शरण लेने आता है और जब शाकुनतला उस हिरण के घाव ठीक कर रही थी तब राजा दुष्यंत उस हिरण का पीछा करते वहॉ पहुँच जाते हैं । एक अन्य कथा के अनुसार राजा महाषि कणव के निमन्त्रण पर आश्रम आते है या कणव ऋिषी से मिलने वहाँ आते हैं क्योंकि कणवाश्रम उनके राज्य की सीमाओं के अन्दर आता था । पर इन सभी कथाओं का अन्ततः एक ही अन्त है कि राजा दुष्यंत की शाकुनतला से भेंट हो जाती है ।
कुलपति कणव की अनुपस्थिती मे शाकुन्तला आश्रम मे पधारे अतिथि राजा दुष्यंत का सम्मान पूर्वक स्वागत करती है । अतिथि सत्कार तथा औपचारिक संवाद के पश्चात राजा दुष्यन्त शाकुन्तला से प्रश्न करते है कि ” आप कौन है और इस आश्रम मे क्या कर रही है ? इस पर शकुन्तला उत्तर देती है कि वो कुलपति कणव की पुत्री है और इस समय उनके पिता आश्रम मे नहीं है और कुछ ज़रूरी कार्य से बाहर गये हुए हैं तथा शीघ्र ही आने वाले है और अपने अतिथि से निवेदन करती है कि कुलपति कणव से मिलने के लिए प्रतीक्षा करने को कहा । राजा दुष्यन्त शाकुन्तला के आचरण से प्रभावित होते है पर उसकी बातों से उन्हे अतयाधिक आश्चर्य होता है और वे शाकुन्तला से कहते है कि ” महाषि तो अखण्ड ब्रह्मचारी है एसे आप उन की पुत्री कैसे हो सकती हो ? ”
On this Shankuntala told king Dushyant about her birth which was told to her by Chancellor Karnav. She narrated that her genetic father Sage Visvamitra left his mother Menka after her birth. Her mother also left her in the dense forest and went to her heavenly abode from where she had come. Fortunately while transiting though the forest Sage Karnav spotted her and picked her up and brought her to the ashram where he brought her up. Their are three people who can be called father, one responsible for birth, one who protects and one who feeds. Hence Sage Karnav is my father.
इस पर शकुन्तला ने राजा दुष्यंत को अपने जन्म के सम्बन्ध मे जानकारी दी जो कि उनके पिता कुलपति कण्व ने उनको बताया था कि उसके जैविक पिता महार्षि विश्वामित्र ने उसके जन्म के बाद उसकी माता अप्सरा मेनका को त्याग दिया था तथा उसके पश्चात उसकी माता उसे घने वन मे छोड़ कर वापस देव लोक चली गई। सौभाग्यवश वन मे उधर से गुज़रते हुए कुलपति कण्व की नज़र उस पर पड़ी और वे उसे उठा कर अपने आश्रम मे ले आये। क्योंकि वन मे कण्व ने उसे पंछियों द्वारा घिरा हुआ पाया था इसलिए उन्होंने उसका नाम शकुन्तला रख दिया और मेरा पालन पोषण किया। शारीरिक जनक, प्राणो के रक्षक तथा अन्नदाता तीनों ही लोग पिता समान होते है। इसलिए कुलपति कणव मेरे पिता है।
King Dushyant was extremely impressed with the thoughts, conduct and beauty of Shakuntala. He there after requested Shakuntala to become his wife and marry him. But Shakuntala asked the king to wait in the ashram for some more time for the return of her father. However on continued request of the king Shakuntala agreed to marry him by the marriage ritual of Gandharv. But before marrying the king, Shakuntala took a vow from the king that the boy child born out of their wedlock will be made the prince and King after his demise. The King without giving a second thought to the vow agreed to her condition. The king Dushyant and Shakuntala their after married by way of Gandharva vivah.
शकुन्तला के विचार, आचर्ण तथा सौन्दर्य से राजा दुष्यंत अत्याधिक प्रभावित हुए। राजा ने तत्पश्चात शकुन्तला से अनुरोध किया कि वह उनसे गन्धर्व विवाह कर उनकी पत्नी बन जाये। इस पर शकुन्तला ने राजा से अपने पिता के आने तक आश्रम मे उनकी प्रतीक्षा करने को कहा। पर राजा दुष्यंत के पुनः अनुरोध करने पर शकुन्तला ने राजा से गन्धर्व विवाह करने की अपनी सहमति दे दी। विवाह करने से पूर्व शकुन्तला ने राजा से एक वचन लिया कि उनके संयोग से जो पुत्र उत्पन्न होगा वह युवराज घोषित किया जायेगा तथा उनके बादइस देश का सम्राट बनेगा। राजा दुष्यंत ने इस वचन के बारे मे बिना सोचे समझे शकुन्तला की बात स्वीकार ली तथा इस के बाद राजा ने शकुन्तला से गन्धर्व विवाह कर उसका पाणिग्रहन किया।
Before returning to his capital King Dushyant assured Shakuntala that he will send his multi diamentional army to ceremoniously bring her to his kingdom. Thereafter King Dushyant returned to his capital. However as per great poet Kalidas before departure King Dushyant gave Shakuntala a royal ring as a token of remembrance. When chancellor Kanav returned to the ashram he became aware of the events which have happened. He told Shakuntala that the Gandharva marriage she has solmanised is in accordance with the laid down rituals. He also said the such marriages are considered the best.
आश्रम मे कुछ समय बिताने के पश्चात राजा दुषयन्त् अपनी राजधानी लौटने से पहले शकुन्तला को विश्वास दिलाया कि वो उसे लेने के लिए अपनी चतुरंगिणी सेन भेजेंगे तथा उसे सम्मान पूर्वक अपने अपने राज्य मे लायेंगे। शकुन्तला को आश्वासन देने के बाद राजा दुषयन्त अपनी राजधानी के लिए प्रस्थान कर गये। पर महाकवि कालीदास की कथा अनुसार राजा दुषयन्त ने जाने से पूर्व शकुनतला को यादगार के रूप मे अपनी राजसी अँगूठी दे गये। कुलपति कण्व जब आश्रम मे वापस आये तो उन्हें सम्पूर्ण घटना के बारे मे ज्ञात हुआ तो उन्होंने शकुनतला से कहा कि जो गन्धर्व विवाह उसने किया है वो धर्म के अनुसार है तथा क्षत्रियो मे गन्धर्व विवाह को श्रेष्ठ माना जाता है।
राजा दुष्यंत अपने राज्य मे वापस जाने के पश्चात शकुन्तला को वहॉ लाने के लिए कोई कोशिश नही की। कुछ समय उपरान्त शकुन्तला ने एक बालक को जन्म दिया। इस बालक ने जन्म से ही सब को अपनी प्रतिभा से प्रभावित किया। यह बालक निडर तथा बहुत ही विक्रमी था। वह बिना किसी भय के जंगली जानवरों तथा शेर से खेलता था। वह उन्हे रस्सी से पेड़ से बॉध देता था और उनके मुँह मे हाथ डाल कर उनके दांत गिनता था। वह उनका दमन करता था इसलिए आश्रम वासियों ने उस का नाम सर्वदमन रख दिया। “प्रस्थे हिमवतो रम्ये मालिनीमामितो नदीम्। जातमुतसृज्यनतं गर्भ मेनका मलिनिमनु।। अस्तवयं सरवदमन: सर्वहि दमयत्सौ। स: सर्व दमनों नाथ कुमार सम्पदधत: ।। “अर्थात : अत्यन्त सुन्दर हिमवत प्रदेश में मालिनी नदी के तट पर मालिनी के अनुरूप मेनका के गर्भ से उत्पन्न शकुनतला ने एक शिशु को जन्म दिया है। क्योंकि ये बालक सब का दमन करता है इसलिए आश्रम के वासियों ने उसका नाम सर्वदमन रखा है।