सर्व प्रथम १९९१ मे कण्वाश्रम क्षेत्र मे मिट्टी के बहाव के कारण कुछ मूर्तियाँ प्रकाश मे आई। इन मे से कुछ गढ़वाल विश्व विद्यालय, श्रीनगर अध्ययन के लिए अपनी संस्था मे ले गया। २०१२ मे फिर एक बार भूमी कटाव से अनेकों मूर्तियाँ प्राप्त हुई। इस की सूचना कण्वाश्रम विकास समिति द्वारा भारतीय पुरात्तव मुख्यालय, नई दिल्ली को दी गई। आदेश पर उनके देहरादून कार्यालय ने कण्वाश्रम मे उक्त स्थान का निरीक्षण कर एक रिपोर्ट मुख्यालय को प्रेक्षित की। प्राप्त मूर्तियों को वन विभाग द्वारा अपने मृग विहार क्षेत्र मे सुरक्षित रख दिया। २०१६ मे वन विभाग के डी०एफ०ओ० ने बिना पुरात्तव विभाग या प्रशासन की अनुमति के सभी मूर्तियों को एक निजी संस्था को सौंप दिया। जब ये त्थय समिति के संज्ञान मे आया तो समिति ने विरोध व्यक्त किया तथा सभी अधिकारियों तथा मुख्य मंत्री, उत्तराखण्ड को पत्र लिख कर इस त्थय से अवगत कराया। समिति के पत्र का संज्ञान लेते हुए मुख्य मंत्री ने इस सम्बन्ध मे स्पष्टीकरण माँगा है जो कि दिये हुए पत्र से विदित है। समिति की माँग है कि सभी मूर्तियाँ वापस लायी जाये और उनका संग्रह कण्वाश्रम विकास समिति के संग्राहलय मे किया जाये ताकि पर्यटक उन्हें देख सके तथा शोध कर्ता उनका अध्ययन कर सके। Artifacts/relics found till todate in Kanvashram have been improperly removed from here without the permission of administration or ASI by the DFO of Forest Department, Uttrakhand and have been given him to a private college. This matter was brought to the notice of Chief Minister, Uttrakhand who has now asked for an explanation on the subject from the Forest Department, Lansdowne.

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